Thursday, February 23, 2012

इंजेक्शन और दवाइयों का गोरखधंधा ( What Medicine are Injection and maze ? )

900 का इंजेक्शन बिकता है 3500 में स्टेन्थ की कीमत पांच गुना अधिक अस्पतालों में पांच गुना कीमत वसूलते हैं डॉक्टर कंपनी, होलसेलर, डॉक्टरों की मिलीभगत
आप यकीन करें या नहीं, मगर यही सच है कि शहर के अस्पतालों में डॉक्टरों द्वारा मरीजों को दिए जा रहे जीवनरक्षक इंजेक्शन और दवाइयों की तीन से चार गुना कीमत वसूल की जा रही है.खास तौर पर हृदय, किडनी, मस्तिष्क और कैंसर से संबंधित जीवनरक्षक इंजेक्शन कुछ डॉक्टर अपने अस्पताल में ही उपलब्ध कराते हैं. इन इंजेक्शन की कोई रसीद या लिखा-पढ़ी नहीं होती. हाथ में आता है केवल हजारों, लाखों रु. का बिल. कुछ दवा कंपनियों ने तो कमाई के लालच में डॉक्टरों से सीधे सांठगांठ कर रखी है. 
जीवनरक्षक इंजेक्शन की थोक और खुदरा कीमतों में अंतर देखने पर तो वैसे ही चक्कर आने लगता है. किडनी, हृदय, कैंसर और मस्तिष्क विकार जैसी गंभीर बीमारियों के मरीज आम तौर पर गंभीर अवस्था में ही अस्पताल पहुंचते हैं. इन बीमारियों के इलाज में लगने वाले पचास फीसदी से अधिक इंजेक्शन और दवाइयां खुदरा दवा विक्रेता के पास उपलब्ध नहीं होतीं. कंपनियां अपने थोक विक्रेताओं के जरिए दवाइयां सीधे डॉक्टरों तक पहुंचा देती हैं. डॉक्टर इनकी मनमानी कीमत मरीजों से वसूल करते हैं. ऐसी महंगी जीवनरक्षक दवाइयां नहीं मिलने पर मरीज की जान भी जा सकती है. गौरतलब है कि मरीजों के परिजनों को यह इंजेक्शन थोक बाजार की तुलना में चार से दस गुना और कभी-कभी बीस गुना अधिक कीमत पर खरीदने पड.ते हैं.
कैसे होती है लूट? : 'लोकमत समाचार' की टीम ने जब कुछ हॉस्पीटलों का जायजा लिया, तो पता चला कि इंजेक्शन और दवाइयों का गोरखधंधा कैसे चलता है. इस दौरान कई सनसनीखेज खुलासे हुए. धंतोली के एक सुप्रसिद्ध हॉस्पीटल में दवा दुकानदार से 'होरीकैनेजोल' दवा मांगने पर उसने इसकी कीमत 3 हजार 410 रु. बताई. जबकि, खुदरा दवा विक्रेता यह दवा 2500 हजार रु. में देते हैं. लेकिन कंपनी और डॉक्टरों की मिलीभगत से ऐसी कई दवाइयां तो खुदरा विक्रेताओं तक पहुंचती ही नहीं.
खुदरा दवा विक्रेताओं के पास नहीं मिलता 'स्टेन्थ'
एंजियोप्लास्टी और बाईपास सर्जरी के लिए महत्वपूर्ण 'स्टेन्थ' की आवश्यकता होती है. थोक बाजार में इसकी कीमत 20 हजार रु. है, लेकिन डॉक्टर खुलेआम 80 हजार से लेकर डेढ. लाख रु. तक में इसे बेचते हैं. खास बात यह है कि 'स्टेन्थ' खुदरा दवा विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं होता. इसी तरह, थोक बाजार में 900 रु. में बिकने वाला 'स्ट्रेप्टोकाइन्स' इंजेक्शन डॉक्टर 3500 रु. में बेचते हैं. यह इंजेक्शन खुदरा बाजार में 1200 रु. में मिल जाते हैं. लेकिन, उन तक मरीज पहुंच नहीं पाते. थोक विक्रेता भी यह इंजेक्शन उन्हें उपलब्ध नहीं कराते. ऐसे कई इंजेक्शन और दवाइयां मिल नहीं पातीं. 900 रु. वाला 'टेकोफायबैन' इंजेक्शन हॉस्पीटल के मेडिकल स्टोर में 2400 रु. में बेचा जाता है. 'लो मॉलिक्युलर वेट' इंजेक्शन 150 रु. में आता है. लेकिन इसे 565 रु. में खरीदना पड.ता है. गंभीर मरीजों को ऐसे 30-30 इंजेक्शन देने पड.ते हैं.
किडनी की दवा की हकीकत : किडनी से संबंधित रोगों के मरीजों को लगाया जाने वाला 'एरीत्रीपायोसीन' इंजेक्शन थोक बाजार में 1050 रु. में मिल जाता है. लेकिन डॉक्टर इसके 2500 रु. लेते हैं. 'अल्ब्यूमाइन' इंजेक्शन 2600 रु. में आता है, लेकिन इसे डॉक्टर 5000 रु. में बेचते हैं. 'टिकोप्लेनिन' इंजेक्शन की कीमत 1 हजार रु. है, लेकिन डॉक्टरों की दवा दुकानों से इसे 2400 रु. में बेचा जाता है.
मस्तिष्क रोग की दवाइयों का हाल : मस्तिष्क रोग के मरीजों को 'आईवीआईजी' नामक जीवनरक्षक इंजेक्शन लगाया जाता है. थोक बाजार में इसकी कीमत 6000 रु. है. लेकिन डॉक्टर अपने हॉस्पीटल की दवा दुकान में यह इंजेक्शन 15 हजार 500 रु. में बेचते हैं. ज्ञात हो कि ऐसे मरीजों को कभी-कभी इस इंजेक्शन के 20-20 डोज देते पड.ते हैं.
कैंसर की दवाएं भी ऊंचे दाम पर : कैंसर के मरीजों को 'होरीकैनेजोल' नामक दवाई दी जाती है. चार गोलियों के पैकेट की थोक बाजार में कीमत 1300 रु. है, लेकिन शहर के कई जाने-माने डॉक्टर अपने हॉस्पीटल की दवा दुकान में इसे 3500 रु. में बेचते हैं. मरीजों की संतुष्टि के लिए उन्हें 5 फीसदी छूट भी दी जाती है. इसी दवा का इंजेक्शन 1800 रु. में आता है, लेकिन इसे बेचा जाता है 5000 रु. में.
'क' सूची की दवाइयों की सीमा तय हो : नागपुर जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के सचिव गिरीश भट्टड. और जनसंपर्क अधिकारी सुनीत माहेश्‍वरी ने कहा कि डॉक्टरों को दवाइयां नहीं बेचनी चाहिए, लेकिन इंजेक्शन लगाने के शुल्क के जरिए कुछ डॉक्टर दवाई की कीमत भी वसूल लेते हैं. ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट की 'क' सूची के अनुसार डॉक्टरों को इमरजेंसी इंजेक्शन का स्टॉक रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन इंजेक्शन मरीजों को नि:शुल्क देना अनिवार्य किया गया है. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कानूनन 'क' सूची की दवाइयों का कितना स्टॉक रखा जाना चाहिए, इसकी कोई सीमा तय नहीं है. इसी बात का फायदा कुछ डॉक्टर उठाते हैं.

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