गरीबी से परेशान एक दंपति ने अपने नवजात शिशु को अनाथालय
को सौंप दिया, जबकि एक मजदूर ने नेत्रहीन बेटी के पैदा होते ही उसे
अनाथालय के दरवाजे पर रखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली. कहा जा सकता है
कि दोनों ही घटनाओं में मां-बाप की गरीबी ही मजबूरी बनी होगी, लेकिन शहर
में विगत एक वर्ष में अवैध संबंधों के चलते जन्म लेने वाले 21 नवजातों को
लावारिस बनाकर छोड. देने के मामले दर्ज हुए हैं.
21 वीं सदी में जन्म लेने वाले इन 21 नवजातों का आखिर इसमें क्या दोष है? शरीर की भूख मिटाने के लिए किया गया पाप ही उनके जीवन का अभिशाप बन गया है. समाज में अब यह मांग जोर पकड.ने लगी है कि जिन लोगों में मां-बाप बनने की योग्यता ही नहीं है ऐसे 'नालायकों' को पकड.कर इनका इलाज किया जाना चाहिए.
कौन हैं नेत्रहीन?
यह मामला दिल को दहला देने वाला है. पति-पत्नी दोनोंही खेत में मजदूरी करते हैं. उन्हें पहले ही दो बेटे हैं. गरीबी में किसी तरह दोनों का लालन-पालन कर रहे इस दंपति को तीसरी संतान बेटी के रूप में प्राप्त हुई, लेकिन वह नेत्रहीन थी. तीन माह तक किसी तरह उसे संभालने के बाद वे एक बालगृह पहुंच गए. वहां के कर्मचारियोंको अपने कलेजे का टुकड.ा सौंपकर अपना सा मुंह लेकर निकल गए. यह बच्ची अब डेढ. वर्ष की हो गईहै. मातृ सेवा संघ की ओर से चलाए जाने वाले 'फॉन्डिलिंग होम' की सभी महिला कर्मचारी इस बच्ची के लिए अब 'मां' हैं. एक महिला कर्मचारी ने बताया कि चिकित्सकों के अनुसार इस बच्ची की आंखों की रोशनी कभी नहीं मिल सकती. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बच्ची नेत्रहीन है या फिर इसे छोड.कर जाने वाले मां-बाप?
गर्भ का सौदा !
दूसरी घटना तो और भी भयावह है. इस मामले में पिता बैंक में नौकरी करता है तो मां ने आर्किटेक्चर की शिक्षा हासिल की है. उच्च तालीम हासिल करने वाले इस दंपति को भी पहले दो बेटे थे. संसार खुशी से चल रहा था. एक गलती हुई और दंपति के घर नया मेहमान आने की पुष्टि हो गई. दोनों ने तय किया कि गर्भपात करवा लिया जाए. इसी बीच उनके एक मित्र ने कहा कि वह बेऔलाद है. गर्भपात करने की बजाय नवजात उसे सौंप कर उसकी झोली में खुशियां डाल दी जाएं. आपसी सहमति से बात आगे बढ.ी. सात माह का गर्भ हुआ तो होने वाले बच्चे को पालने की हामी भरने वाला मित्र ही गायब हो गया. किस्मत से पति की बैंक से नौकरी भी छूट गई. दंपति पशोपेश में पड. गए कि तीसरे बच्चे की जिम्मेदारी कैसे उठाई जाए? अंत में दोनों ने दिल कठोर कर एक फैसला किया. प्रसूति से पहले ही दोनों श्रद्धानंद अनाथालय पहुंचे. वहां पहुंचकर दोनों ने गुजारिश की कि होने वाले बच्चे को वे अनाथालय में सौंपना चाहते हैं. कर्मचारी परेशान हो गए. दोनों को समझाया गया. नहीं माने तो उनका प्रस्ताव मान लिया गया. पति-पत्नी लौट आए. अस्पताल में प्रसूति के बाद दूसरे दिन ही अनाथालय को फोन कर बच्चा उनके हवाले कर दिया गया. जन्म लेने के दूसरे दिन ही मां-बाप के जिंदा होते हुए यह बच्चा अनाथ हो गया था.
पीली नदी के किनारे दो दिन की नवजात बालिका कोई छोड. गया था. उसका कान चीटियां खा रहीं थी. इसी प्रकार नदी किनारे कोई एक दिन का बच्चा भी छोड. गया था. उसे भी चीटियां खा गईं थी. उसे कोई बचा नहीं सका. दूसरे मामले में एक बच्ची को रेलवे प्लेटफॉर्म पर कोई छोड. गया. दिल को झकझोर देने वाली ऐसी घटनाओं से शहर दहल रहा है. विगत एक वर्ष में विवाहेतर तथा विवाह पूर्व संबंधों की वजह से 21 नवजात इस दुनिया में आए. 15 महिलाओं ने अपने बच्चों को अनाथालय में छोड.ा. 13 लड.कियां कुंवारी होने के बावजूद मां बन गईं. अनैतिकता के चलते संसार में आने वाले इन 36 बच्चों का आखिर दोष क्या है?
मां का दूध तक नसीब नहीं
मां के जिंदा होने के बावजूद इन 36 बालकों को मां का दूध नसीब नहीं हुआ. इस दुनिया में आने वाले हर बच्चे का अपनी मां के दूध पर अधिकार होता ही है. ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने बाल कल्याण समिति, अनाथालय बनाए हैं, किंतु अवैध संबंधों से जन्म लेने वाले बच्चे इस कानून के दायरे में नहीं आते. जन्म लेने के छह माह तक अनिवार्य रूप से बच्चों को मां का दूध दिया जाना चाहिए. किंतु अवैध संबंधों की वजह से मां ा
सुमेध वाघमारे
लोकमत समाचार
21 वीं सदी में जन्म लेने वाले इन 21 नवजातों का आखिर इसमें क्या दोष है? शरीर की भूख मिटाने के लिए किया गया पाप ही उनके जीवन का अभिशाप बन गया है. समाज में अब यह मांग जोर पकड.ने लगी है कि जिन लोगों में मां-बाप बनने की योग्यता ही नहीं है ऐसे 'नालायकों' को पकड.कर इनका इलाज किया जाना चाहिए.
कौन हैं नेत्रहीन?
यह मामला दिल को दहला देने वाला है. पति-पत्नी दोनोंही खेत में मजदूरी करते हैं. उन्हें पहले ही दो बेटे हैं. गरीबी में किसी तरह दोनों का लालन-पालन कर रहे इस दंपति को तीसरी संतान बेटी के रूप में प्राप्त हुई, लेकिन वह नेत्रहीन थी. तीन माह तक किसी तरह उसे संभालने के बाद वे एक बालगृह पहुंच गए. वहां के कर्मचारियोंको अपने कलेजे का टुकड.ा सौंपकर अपना सा मुंह लेकर निकल गए. यह बच्ची अब डेढ. वर्ष की हो गईहै. मातृ सेवा संघ की ओर से चलाए जाने वाले 'फॉन्डिलिंग होम' की सभी महिला कर्मचारी इस बच्ची के लिए अब 'मां' हैं. एक महिला कर्मचारी ने बताया कि चिकित्सकों के अनुसार इस बच्ची की आंखों की रोशनी कभी नहीं मिल सकती. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बच्ची नेत्रहीन है या फिर इसे छोड.कर जाने वाले मां-बाप?
गर्भ का सौदा !
दूसरी घटना तो और भी भयावह है. इस मामले में पिता बैंक में नौकरी करता है तो मां ने आर्किटेक्चर की शिक्षा हासिल की है. उच्च तालीम हासिल करने वाले इस दंपति को भी पहले दो बेटे थे. संसार खुशी से चल रहा था. एक गलती हुई और दंपति के घर नया मेहमान आने की पुष्टि हो गई. दोनों ने तय किया कि गर्भपात करवा लिया जाए. इसी बीच उनके एक मित्र ने कहा कि वह बेऔलाद है. गर्भपात करने की बजाय नवजात उसे सौंप कर उसकी झोली में खुशियां डाल दी जाएं. आपसी सहमति से बात आगे बढ.ी. सात माह का गर्भ हुआ तो होने वाले बच्चे को पालने की हामी भरने वाला मित्र ही गायब हो गया. किस्मत से पति की बैंक से नौकरी भी छूट गई. दंपति पशोपेश में पड. गए कि तीसरे बच्चे की जिम्मेदारी कैसे उठाई जाए? अंत में दोनों ने दिल कठोर कर एक फैसला किया. प्रसूति से पहले ही दोनों श्रद्धानंद अनाथालय पहुंचे. वहां पहुंचकर दोनों ने गुजारिश की कि होने वाले बच्चे को वे अनाथालय में सौंपना चाहते हैं. कर्मचारी परेशान हो गए. दोनों को समझाया गया. नहीं माने तो उनका प्रस्ताव मान लिया गया. पति-पत्नी लौट आए. अस्पताल में प्रसूति के बाद दूसरे दिन ही अनाथालय को फोन कर बच्चा उनके हवाले कर दिया गया. जन्म लेने के दूसरे दिन ही मां-बाप के जिंदा होते हुए यह बच्चा अनाथ हो गया था.
पीली नदी के किनारे दो दिन की नवजात बालिका कोई छोड. गया था. उसका कान चीटियां खा रहीं थी. इसी प्रकार नदी किनारे कोई एक दिन का बच्चा भी छोड. गया था. उसे भी चीटियां खा गईं थी. उसे कोई बचा नहीं सका. दूसरे मामले में एक बच्ची को रेलवे प्लेटफॉर्म पर कोई छोड. गया. दिल को झकझोर देने वाली ऐसी घटनाओं से शहर दहल रहा है. विगत एक वर्ष में विवाहेतर तथा विवाह पूर्व संबंधों की वजह से 21 नवजात इस दुनिया में आए. 15 महिलाओं ने अपने बच्चों को अनाथालय में छोड.ा. 13 लड.कियां कुंवारी होने के बावजूद मां बन गईं. अनैतिकता के चलते संसार में आने वाले इन 36 बच्चों का आखिर दोष क्या है?
मां का दूध तक नसीब नहीं
मां के जिंदा होने के बावजूद इन 36 बालकों को मां का दूध नसीब नहीं हुआ. इस दुनिया में आने वाले हर बच्चे का अपनी मां के दूध पर अधिकार होता ही है. ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने बाल कल्याण समिति, अनाथालय बनाए हैं, किंतु अवैध संबंधों से जन्म लेने वाले बच्चे इस कानून के दायरे में नहीं आते. जन्म लेने के छह माह तक अनिवार्य रूप से बच्चों को मां का दूध दिया जाना चाहिए. किंतु अवैध संबंधों की वजह से मां ा
सुमेध वाघमारे
लोकमत समाचार
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