झाड़ीपट्टी की
रंगभूमि में अपने अभिनय से किसी भी रोते हुए इंसान के चेहरे पर मुस्कान
लाने वाले नाट्य-कलाकार शेषराव मोहुर्ले का गढ.चिरोली के पास हुई भीषण
दुर्घटना में निधन हो गया. हर किसी ने उनके आकस्मिक निधन पर शोक व्यक्त
किया. परिवार के अकेले कमाने वाले होने के कारण शेषराव मोहुर्ले का परिवार
आर्थिक आपत्ति में घिर गया है.
शेषराव मोहुर्ले के बारे में जानने वाला हर कोई कहता है कि वह एक जिंदादिल इंसान था. उनके पिता नामदेव मोहुर्ले की आंखें बात करते वक्त बहने लगती हैं. शेषराव के बाद अब उनकी पत्नी विभा तथा तीन बच्चों की जिम्मेदारी उनके वृद्ध कंधों पर आ गई है. झोपडपट्टी में रहते हुए भी नागपुर और झाड़ीपट्टी की रंगभूमि पर शेषराव सुप्रसिद्ध था.
मतदान का कर्तव्य निभाया
शेषराव की पत्नी विभा ने कहा कि उनका ध्यान नाटकों में ही ज्यादा रहता था. कभी-कभी तो हफ्ते-दो हफ्ते तक घर नहीं आते थे. कभी सुबह आकर शाम को दूसरी जगह निकल जाते थे. उस दिन मतदान करने के लिए नागपुर आए थे. मतदान के बाद फिर नाटक के लिए वड.सा गए तो कभी लौटकर ही नहीं आए. शेषराव के पिता कहते हैं कि वह उनका आधार था. कोई भी काम दोनों मिलकर करते थे. आर्थिक समस्या आई तो कहीं से भी पांच-पच्चीस हजार रुपए लेकर आता था.
शेषराव.. शशि. शेष्या!
इस कलाकार का मां-बाप ने नाम रखा था शेषराव. बाद में वह बड.ा कलाकार बना. नाट्यक्षेत्र के लोगों ने उसे 'शशि' नाम दिया था. मगर उसकी पहचान शेष्या के ही रूप में थी. मगर घर और नाटक से हटकर भी शेषराव की एक और दुनिया थी. इसमें शामिल थे उनके अनगिनत मित्र. केडीके कॉलेज के पास रात को फुटपाथ पर सब दोस्त इकट्ठा होते थे. शेषराव की बातों से दोस्तों का दिनभर का तनाव दूर हो जाता था.
'नाटकाला चाललो'
दिवाली से झाड़ीपट्टी में नाटकों का सीजन शुरू होता है. सीजन में शेषराव 15-15 दिन घर नहीं आता था. 'शपथ कुंकवाची', 'आई तुझं लेकरु', 'पैशासाठी वाट्टेल ते', 'बायको लग्नाची' आदि उनके हाल-फिलहाल के नाटक थे. दो दिन पहले उनका नाटक वड.सा में चल रहा था.
मतदान के लिए वह नागपुर आए. थोडी देर आराम किया और दुबारा वड.सा के लिए निकल गए. जाते वक्त पिता से कहा कि नाटक के लिए जा रहे हैं. मगर उसी रात वड.सा के पास हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. चालीस साल की उम्र में निधन होने वाले शेषराव का कैरियर इन दिनों गति पकड. रहा था. कई कंपनियों के ऑफर उनके पास थे. उनके एक मित्र ने कहा कि मौत ने भले ही शेषराव को हमसे दूर कर दिया हो लेकिन उनकी स्मृतियां हमेशा बनी रहेंगी.
हंसाने वाले के बच्चों को रोने न दें
शेषराव मोहुर्ले की मौत के बाद वैभव, आभा और अभय इन तीन बच्चों के पालन की जिम्मेदारी शेषराव की पत्नी विभा पर ही है. साथ ही बूढे. सास-ससुर को भी देखना है. झोपडी में रहने वाली विभा ने कहा कि हम अब निराधार हो गए हैं. घर में आय का दूसरा स्रोत नहीं है. मेरी पढ.ाई बारहवीं तक हुई है. यदि कोई नौकरी मिल जाए तो अच्छा होगा. हमेशा दूसरों को हंसाने वाले के बच्चों को हंसाते रखने की जिम्मेदारी अब हमारी है. सभी सामने आकर मदद करे.
संपर्क : विभा शेषराव मोहुर्ले (मो. 9764400544)
शेषराव मोहुर्ले के बारे में जानने वाला हर कोई कहता है कि वह एक जिंदादिल इंसान था. उनके पिता नामदेव मोहुर्ले की आंखें बात करते वक्त बहने लगती हैं. शेषराव के बाद अब उनकी पत्नी विभा तथा तीन बच्चों की जिम्मेदारी उनके वृद्ध कंधों पर आ गई है. झोपडपट्टी में रहते हुए भी नागपुर और झाड़ीपट्टी की रंगभूमि पर शेषराव सुप्रसिद्ध था.
मतदान का कर्तव्य निभाया
शेषराव की पत्नी विभा ने कहा कि उनका ध्यान नाटकों में ही ज्यादा रहता था. कभी-कभी तो हफ्ते-दो हफ्ते तक घर नहीं आते थे. कभी सुबह आकर शाम को दूसरी जगह निकल जाते थे. उस दिन मतदान करने के लिए नागपुर आए थे. मतदान के बाद फिर नाटक के लिए वड.सा गए तो कभी लौटकर ही नहीं आए. शेषराव के पिता कहते हैं कि वह उनका आधार था. कोई भी काम दोनों मिलकर करते थे. आर्थिक समस्या आई तो कहीं से भी पांच-पच्चीस हजार रुपए लेकर आता था.
शेषराव.. शशि. शेष्या!
इस कलाकार का मां-बाप ने नाम रखा था शेषराव. बाद में वह बड.ा कलाकार बना. नाट्यक्षेत्र के लोगों ने उसे 'शशि' नाम दिया था. मगर उसकी पहचान शेष्या के ही रूप में थी. मगर घर और नाटक से हटकर भी शेषराव की एक और दुनिया थी. इसमें शामिल थे उनके अनगिनत मित्र. केडीके कॉलेज के पास रात को फुटपाथ पर सब दोस्त इकट्ठा होते थे. शेषराव की बातों से दोस्तों का दिनभर का तनाव दूर हो जाता था.
'नाटकाला चाललो'
दिवाली से झाड़ीपट्टी में नाटकों का सीजन शुरू होता है. सीजन में शेषराव 15-15 दिन घर नहीं आता था. 'शपथ कुंकवाची', 'आई तुझं लेकरु', 'पैशासाठी वाट्टेल ते', 'बायको लग्नाची' आदि उनके हाल-फिलहाल के नाटक थे. दो दिन पहले उनका नाटक वड.सा में चल रहा था.
मतदान के लिए वह नागपुर आए. थोडी देर आराम किया और दुबारा वड.सा के लिए निकल गए. जाते वक्त पिता से कहा कि नाटक के लिए जा रहे हैं. मगर उसी रात वड.सा के पास हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. चालीस साल की उम्र में निधन होने वाले शेषराव का कैरियर इन दिनों गति पकड. रहा था. कई कंपनियों के ऑफर उनके पास थे. उनके एक मित्र ने कहा कि मौत ने भले ही शेषराव को हमसे दूर कर दिया हो लेकिन उनकी स्मृतियां हमेशा बनी रहेंगी.
हंसाने वाले के बच्चों को रोने न दें
शेषराव मोहुर्ले की मौत के बाद वैभव, आभा और अभय इन तीन बच्चों के पालन की जिम्मेदारी शेषराव की पत्नी विभा पर ही है. साथ ही बूढे. सास-ससुर को भी देखना है. झोपडी में रहने वाली विभा ने कहा कि हम अब निराधार हो गए हैं. घर में आय का दूसरा स्रोत नहीं है. मेरी पढ.ाई बारहवीं तक हुई है. यदि कोई नौकरी मिल जाए तो अच्छा होगा. हमेशा दूसरों को हंसाने वाले के बच्चों को हंसाते रखने की जिम्मेदारी अब हमारी है. सभी सामने आकर मदद करे.
संपर्क : विभा शेषराव मोहुर्ले (मो. 9764400544)
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