उपराजधानी के विविध
हिस्सों में इन दिनों सूर्यास्त के समय आसमान में उड.ते हजारों विदेशी
पक्षी शहरवासियों को मोहित कर रहे हैं. इन पंछियों के समूहों को देखकर
पक्षी प्रेमियों की नजर ठहर जाती है. शहर में आए 40 हजार से अधिक परिंदे
ऐसे हैं, जो तुर्कस्तान, उज्बेकिस्तान, अजरबैजान से हजारों किलोमीटर का
फासला तय कर पहुंचे है. पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार इन पक्षियों को
अंग्रेजी में रोजी पैस्टर और मराठी में भोरडी गुलाबी मैना भी कहा जाता है.
मैना जैसा दिखाई देने वाला यह गुलाबी रंग का पक्षी है. इसका सिर, गला और
सीना गुलाबी और पूंछ काले रंग की होती है. सिर और गर्दन पर तुर्रा होता है.
हालांकि यूरोप से स्थानांतरित पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर आते हैं. लेकिन यह पश्चिम से पूर्व की ओर आते हैं. नर और मादा दोनों लगभग एक जैसे ही दिखाई देने से पहचान थोडी मुश्किल रहती हैं. इंडियन बर्ड कंर्जवेशन नेटवर्क के पदाधिकारी तरुण बालपांडे ने बताया कि यह पक्षी नागपुर में 8 से 10 दिन गुजारने के बाद वापस लौट जाते हैं. फिर उनकी जगह दूसरे पक्षियों के दल पहुंच जाते है. इन पंछियों को लंबी दूरी की यात्रा के दरमियान भोजन और आराम भी जरूरी होता है. जिसके चलते शहर इनका कुछ दिनों के लिए बसेरा बन जाता है. इसे देखते हुए पक्षी निरीक्षक इस प्रक्रिया को 'फीडिंग एंड रेस्टिंग स्टॉप' कहते हैं.
नेटवर्क के राज्य समन्वयक राजू कसंबे ने बताया कि फिलहाल यह पक्षी मेडिकल कैम्पस, आरपीटीएस, टेकडी गणेश मंदिर और सीताबर्डी किला परिसर में रात गुजार रहे हैं. दिन के समय शहर के आसपास स्थित जंगल परिसरों में रहते हैं. गर्मियों की शुरुआत में नागपुर पहुंचने का इनका सिलसिला जारी हो जाता है. यह समय पलाश फूल खिलने का माना जाता है. जिसके कारण इस पक्षी को पलाश मैना भी कहा जाता है. पक्षियों के अध्ययन के लिए पक्षी निरीक्षक तारिक सानी, गोपाल ठोसर के मार्गदर्शन में कई पक्षी निरीक्षक विभिन्न इलाकों में मुस्तैद है.
हालांकि यूरोप से स्थानांतरित पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर आते हैं. लेकिन यह पश्चिम से पूर्व की ओर आते हैं. नर और मादा दोनों लगभग एक जैसे ही दिखाई देने से पहचान थोडी मुश्किल रहती हैं. इंडियन बर्ड कंर्जवेशन नेटवर्क के पदाधिकारी तरुण बालपांडे ने बताया कि यह पक्षी नागपुर में 8 से 10 दिन गुजारने के बाद वापस लौट जाते हैं. फिर उनकी जगह दूसरे पक्षियों के दल पहुंच जाते है. इन पंछियों को लंबी दूरी की यात्रा के दरमियान भोजन और आराम भी जरूरी होता है. जिसके चलते शहर इनका कुछ दिनों के लिए बसेरा बन जाता है. इसे देखते हुए पक्षी निरीक्षक इस प्रक्रिया को 'फीडिंग एंड रेस्टिंग स्टॉप' कहते हैं.
नेटवर्क के राज्य समन्वयक राजू कसंबे ने बताया कि फिलहाल यह पक्षी मेडिकल कैम्पस, आरपीटीएस, टेकडी गणेश मंदिर और सीताबर्डी किला परिसर में रात गुजार रहे हैं. दिन के समय शहर के आसपास स्थित जंगल परिसरों में रहते हैं. गर्मियों की शुरुआत में नागपुर पहुंचने का इनका सिलसिला जारी हो जाता है. यह समय पलाश फूल खिलने का माना जाता है. जिसके कारण इस पक्षी को पलाश मैना भी कहा जाता है. पक्षियों के अध्ययन के लिए पक्षी निरीक्षक तारिक सानी, गोपाल ठोसर के मार्गदर्शन में कई पक्षी निरीक्षक विभिन्न इलाकों में मुस्तैद है.
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